अगर आप रोज सोचे की में बीमार होने वाला हुं या मैं किसी तरह की दुर्घटना का शिकार होने वाला हुं तो वही होगा। एक दिन आपके साथ कुछ ऐसा ही होगा जिसे आप अपनी सोच में शामिल कर रहे थे।
ईर्ष्या क्या होती हैं? हमे कैसे पता की ईर्ष्या का एहसास क्या होता हैं? जो हम एहसास करते हैं क्या यह सब हमारे अंदर दफ़न होते हैं? हां, हमारा मन एक बालक की तरह होता हैं जिसे हम जो दृश्य दिखाएँगे वो उसे सच मानेगा| हमारे मन को हम जैसे चाहे वैसे रूप में तब्दील कर सकते हैं जैसे – अगर आप रोज सोचे की मैं बीमार होने वाला हुं या मैं किसी तरह की दुर्घटना का शिकार होने वाला हुं, तो वही होगा| एक दिन आपके साथ कुछ ऐसा ही होगा जिसे आप अपनी सोच में शामिल कर रहे थे।

तभी तो कहते हैं अपने रास्ते में कोई रुकावट न आए, इसके लिए रोज अपने आप को अच्छी बातों और एहसास के रूबरू रखे| ईर्ष्या भी एक एहसास हैं जो हमारे भीतर मन में दबी होती है| ईर्ष्या हमे नहीं हम ईर्ष्या को जागृत करते हैं| अक्सर हम उन लोगो के प्रति ईर्ष्या का भाव अपने मन में महसूस करते हैं जो हमारे बेहद क़रीबी होते हैं जैसे – दो बहने या सहेलियाँ एक दूसरे से बेहद प्यार करने के बाद भी कभी-कभी एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या का भाव व्यक्त कर ही देती हैं| इसका मतलब यह नहीं होता हैं की वह एक दूसरे के प्रति सच्ची नहीं हैं या एक दूसरे को नापसंद करती हैं।
ईर्ष्या तब उभरती हैं जब हम मन ही मन किसी बात से परेशान रहते हैं या जब हम अपने भाव व्यक्त नहीं करते हैं| Sadhguru Sakshi Shree Ji कहते हैं की अपने मन के हर भाव को बाहर निकाले – चाहे वो गुस्सा हो, प्यार हो, दुःख हो, ख़ुशी हो, कैसा भी भाव आपके मन में दबे रहने से ही रोगो का जन्म होता हैं| अगर आप अपने भीतर इन एहसास को दबा कर रखेंगे तो आप अपने अंदर और इर्द-गिर्द नकारात्मक ऊर्जा को उत्पन्न करते हैं जिसके कारण आप न जाने कब खुद भी नकारात्मक बन जाते हैं|

अपने हर ऊर्जा को खुले मन से अपनाये। उसे किस प्रकार से इस्तेमाल करना हैं उसका ज्ञान पाए| अगर किसी के प्रति ईर्ष्या महसूस कर रहे हैं तो उससे वार्तालाप करे| Science Divine एक माध्यम हैं जिसमे Guru ji ध्यान की क्रिया से ईर्ष्या जैसे भाव को अपने अंतर मन से दूर करने की कला को सिखाते हैं| Guru Ji का कहना हैं ‘इंसान एक कोमल कमल हैं जिसे खिलना हैं। नकारात्मकता से खुद को दूर रख कर अपने मन को आज में जीने की कला के साथ आप ईर्ष्या जैसे भाव को भी संभालने की बुद्धि प्राप्त कर पाते हैं|
ध्यान जैसे विकल्प का इस्तेमाल कर के आप न केवल अपने आप को शांत करते हैं बल्कि अपने आस-पास रहने वाले लोगो को भी ख़ुशी देते हैं|
इस भाग दौड़ वाली ज़िंदगी में हम अपने आप को कितना ही समय दे पाते होंगे? तो ऐसे में लाज़मी हैं की हम कुछ ऐसे एहसास अपने अंदर जगा लेते हैं। जो हमारे अंतर मन और शरीर के लिए केवल मुसीबत का स्रोत बनते हैं। अगर आप किसी भी तरह के अनुपयुक्त भाव महसूस कर रहे हैं तो उस भाव से भागने की जगह उसका सामना करें। उस भाव के साथ कुछ पल बिताये, जाने यह द्वेष किस तरह से जगा हैं और फिर उस वजह को खत्म करें।